Thursday, July 23, 2009

हम तो बात करेगा...

जिसको मरना है मरने दो, किसीको डरना है तो डरने दो, किसी को हम पे हसना है तो हसने दो

हमारा नाम MMS है और हम तो पाकिस्तान से बात करेगा...

मुझे याद है की में मैं मियाँ मुशर्रफ़ से मिला था दिल्ली में. उसके पहले भी डेढ़ सारे आतंकवादी हमले हुए थे देश पर. हर बार पाकिस्तान को दोशी कहा गया था और कई बार यह सिद्ध भी किया गया था की पाकिस्तान स्वयं हमारे देश पर हमले करवाता है. लेकिन क्या करता? सच में, बताईये मैं क्या करता? तब मैं 75 साल का था. लोग कहते हैं इस आयु में ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता. लोग मेरे देश को भी बहुत पुराना कहते हैं. इसलिए मैं और मेरे नेतृत्व में देश ने ये निर्णय लिया की हम वही करें जो हम कर सकते हैं. तब दिमाग में आया की हम कुछ नहीं तो बात तो कर ही सकते हैं. तो 2005 के दिल्ली घोषणा में मियां मुशर्रफ़ के साथ मैंने बोला की सारे मामलों का हल बातचीत से निकालना चाहिए. हम ने जो वचन दिया वो निभाया भी. हम बात करते ही रहे. और उस तरफ आतंकवादी हमला करते ही रहे. मासूम लोग मरते ही रहे, जान गंवाते ही रहे. डेढ़ सारे परिवार भिकरते रहे, टूटते रहे, अपनी रोज़ी रोटी खोते रहें. लेकिन मैं तो शांतिदूत हूँ; इसलिए मैं पाकिस्तानियों से बात करता ही रहा और करता ही रहा.


अचानक मेरे और मेरे पाकिस्तानी मित्रों की इस प्रेम-आलाप पे किसी की बुरी नज़र लग गयी. सालों से लोग मरते आ रहे थे. मार्केट में,मंदिर में, थियेटर में, रेलवे कोच में, स्टेशन पे, चौराहे पे,अस्पताल में, रस्ते पे, हर जगह लोग आतंकवादी हमलों में मरते हीं थे. पिछले साल 26 नवम्बर तो ऐसा ही एक और दिन था. १० आतंकवादी ए, गोलीबारी की,बम्ब फोड़ा और as usual सौ दो सौ लोग मरे. इतनी सी चीज़, जो हर साल मुम्बैं में होती ही थी लोगों ने इस बार थोडा सा सीरियसली ले लिया. मैं pressureमें आके भटक गया और पाकिस्तान से बात करना बंद कर दिया. कितना बूरा लगा था मुझे कैसे बताऊँ :( महीनों तक बात कर नहीं पाए, सच में हमारे प्रेम-अलाप (composite dialog, confidence building measures, etc) पर किसी की नज़र लग गयी थी.

लेकिन मेरी देश की प्यारी जनता ने मेरी 'काबिलियत' को देख कर मुझे फिर से PM बनाया. तो मैं मेरे काम (बात करना ) पे लौट आया. पहले तो शान्ति और दोस्ती की पुकार तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान की धरती से हम दे ही चुके थे. इस बार हम ईजिप्ट गए हनीमून के लिए और वहां फिर से बोला


हम तो बात करेगा, हम तो बात करेगा...

2005 में तो सिर्फ पाकिस्तानी ने कहा था की आतंकवाद के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल करने नहीं देंगे. इस बार मैंने सोचा की एक कदम और आगे रखते हैं, इसके बदले में पाकिस्तान को कुछ भेंट देते हैं. और मैंने बोलते बोलते यह भी बोल दिया की बलूचिस्तान का मामला भी हमें बातचीत से सुलज़ाना चाहिए और हम बलूचिस्तान के मामलों में हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे. हमें तो बात करना अच्छा लगता है तो हमने बोल दिया एक दुसरे से की हम अपनी अपनी धरती को आतंकवाद के लिए उपयोग करने नहीं देंगे. लेकिन दुनिया के लोग इस को कुछ और ही समझ बैठे. अब तक वोह समझते थे की सिर्फ पाकिस्तान आतंकवाद को बढावा देता है. अभी मेरे देश को भी उसी दृष्टि से देखने लगे हैं; कहते हैं की बलूचिस्थान में जो हो रहा है उस में हिंदुस्तान का हाथ है.


मैंने तो मिस्र में पाकिस्तानी मोहतरमा को आदाब कर के उनका PM घिलानी को कहा की हम बलूचिस्तान में कोई दकल अंदाजी नहीं करेंगे. लेकिन लोग समझ बैठे की हमारा हाथ वहां होनेवाली घतानावों में है और वो हमें भी 'terrorism sponsor' समझ बैठे. मेरे देश का image खराब हुआ तो क्या हुआ! मुझे तो अभी लोग शान्तिधूत कहेंगे, पाकिस्तान में तो मेरी पूजा होगी.


Deccan Herald


DNA India


Economist PM

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