- I am known as the serial kisser.
- I kissed the actress casted opposite to me in a movie 72 times. The count is as per Page 3 journalists; it might be many times more in real.
- Throughout my film career, I have kissed my heroines except in 8 movies. I have been in more than 20 films by now.
- Title of most of the movies that I have acted in sound like "Murder", "Jawani Diwani", "Gangster", "The Killer", "Zeher" and blah blah blah. Very appealing, aren't they?
- Intimate bedroom scenes are common in my movies. Don't mistake me; it is all for the good of the young generation of the Nation. This way, they are getting necessary general knowledge.
- Though I can't act and recite dialogs properly, my talent is all visible in steamy and sensual scenes.
- I am born to a muslim father and christian mother and have two uncles who bear Hindu names. My uncles, bearing Hindu names, are always in the forefront to defend the minority rights. You might have seen them very often on TV. They are also crorepatis like me and live in posh houses in Mumbai.
- I know that the country I live in has a majority Hindu population. I also know that the crores of rupees that I have earned is mostly from the Hindus who paid to watch my movies.
Janani Janma Bhoomischa Swargadapi Gariyasi - Mother and Motherland are greater than heaven
Friday, July 31, 2009
Homeless Crorepati
Sunday, July 26, 2009
Jai Ho, Its Vijay Divas today
It was ten years ago when we taught the Pakistanis yet another deserving lesson. It was this day a decade ago our defense forces recaptured 'all' the occupied land of Kashmir from the pakistani control.
Around 576 brave soldiers achieved martyrdom to quell the misadventure of mian musharraf and his men. They shall all be alive in the memories of every Bharatiya!
Bhaarat Maata Ki Jai, Veer Javaanon Ki Jai!
A brief writeup on Captain Saurabh Kaalia, An icon from the Kargil war, follows:
[Courtesy: Shri Kanchan Gupta http://kanchangupta.blogspot.com/]
Thursday, July 23, 2009
हम तो बात करेगा...
हमारा नाम MMS है और हम तो पाकिस्तान से बात करेगा...
मुझे याद है की में मैं मियाँ मुशर्रफ़ से मिला था दिल्ली में. उसके पहले भी डेढ़ सारे आतंकवादी हमले हुए थे देश पर. हर बार पाकिस्तान को दोशी कहा गया था और कई बार यह सिद्ध भी किया गया था की पाकिस्तान स्वयं हमारे देश पर हमले करवाता है. लेकिन क्या करता? सच में, बताईये मैं क्या करता? तब मैं 75 साल का था. लोग कहते हैं इस आयु में ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता. लोग मेरे देश को भी बहुत पुराना कहते हैं. इसलिए मैं और मेरे नेतृत्व में देश ने ये निर्णय लिया की हम वही करें जो हम कर सकते हैं. तब दिमाग में आया की हम कुछ नहीं तो बात तो कर ही सकते हैं. तो 2005 के दिल्ली घोषणा में मियां मुशर्रफ़ के साथ मैंने बोला की सारे मामलों का हल बातचीत से निकालना चाहिए. हम ने जो वचन दिया वो निभाया भी. हम बात करते ही रहे. और उस तरफ आतंकवादी हमला करते ही रहे. मासूम लोग मरते ही रहे, जान गंवाते ही रहे. डेढ़ सारे परिवार भिकरते रहे, टूटते रहे, अपनी रोज़ी रोटी खोते रहें. लेकिन मैं तो शांतिदूत हूँ; इसलिए मैं पाकिस्तानियों से बात करता ही रहा और करता ही रहा.
अचानक मेरे और मेरे पाकिस्तानी मित्रों की इस प्रेम-आलाप पे किसी की बुरी नज़र लग गयी. सालों से लोग मरते आ रहे थे. मार्केट में,मंदिर में, थियेटर में, रेलवे कोच में, स्टेशन पे, चौराहे पे,अस्पताल में, रस्ते पे, हर जगह लोग आतंकवादी हमलों में मरते हीं थे. पिछले साल 26 नवम्बर तो ऐसा ही एक और दिन था. १० आतंकवादी ए, गोलीबारी की,बम्ब फोड़ा और as usual सौ दो सौ लोग मरे. इतनी सी चीज़, जो हर साल मुम्बैं में होती ही थी लोगों ने इस बार थोडा सा सीरियसली ले लिया. मैं pressureमें आके भटक गया और पाकिस्तान से बात करना बंद कर दिया. कितना बूरा लगा था मुझे कैसे बताऊँ :( महीनों तक बात कर नहीं पाए, सच में हमारे प्रेम-अलाप (composite dialog, confidence building measures, etc) पर किसी की नज़र लग गयी थी.
लेकिन मेरी देश की प्यारी जनता ने मेरी 'काबिलियत' को देख कर मुझे फिर से PM बनाया. तो मैं मेरे काम (बात करना ) पे लौट आया. पहले तो शान्ति और दोस्ती की पुकार तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान की धरती से हम दे ही चुके थे. इस बार हम ईजिप्ट गए हनीमून के लिए और वहां फिर से बोला
हम तो बात करेगा, हम तो बात करेगा...
2005 में तो सिर्फ पाकिस्तानी ने कहा था की आतंकवाद के लिए अपनी धरती का इस्तेमाल करने नहीं देंगे. इस बार मैंने सोचा की एक कदम और आगे रखते हैं, इसके बदले में पाकिस्तान को कुछ भेंट देते हैं. और मैंने बोलते बोलते यह भी बोल दिया की बलूचिस्तान का मामला भी हमें बातचीत से सुलज़ाना चाहिए और हम बलूचिस्तान के मामलों में हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे. हमें तो बात करना अच्छा लगता है तो हमने बोल दिया एक दुसरे से की हम अपनी अपनी धरती को आतंकवाद के लिए उपयोग करने नहीं देंगे. लेकिन दुनिया के लोग इस को कुछ और ही समझ बैठे. अब तक वोह समझते थे की सिर्फ पाकिस्तान आतंकवाद को बढावा देता है. अभी मेरे देश को भी उसी दृष्टि से देखने लगे हैं; कहते हैं की बलूचिस्थान में जो हो रहा है उस में हिंदुस्तान का हाथ है.
मैंने तो मिस्र में पाकिस्तानी मोहतरमा को आदाब कर के उनका PM घिलानी को कहा की हम बलूचिस्तान में कोई दकल अंदाजी नहीं करेंगे. लेकिन लोग समझ बैठे की हमारा हाथ वहां होनेवाली घतानावों में है और वो हमें भी 'terrorism sponsor' समझ बैठे. मेरे देश का image खराब हुआ तो क्या हुआ! मुझे तो अभी लोग शान्तिधूत कहेंगे, पाकिस्तान में तो मेरी पूजा होगी.
Friday, July 10, 2009
Are we cultuarally becoming decadent?
It was frustrating to say the least :( Every TV channel was playing the live telecast of Micheal Jackson's funeral (plus commercialized drama). It made me wonder isn't there anything more important pertaining to India and its people than a foreign dancer's death? Innocent people were getting killed and stabbed on the roads of Mysooru, fear had gripped an Indian city but our dear media chose to write editorials about Micheal's death and also live telecast his memorial service!
Shri Balbir Punj has articulated the decadent cultural awareness amongst our people and media's editorial policies which hypes up anything western in today's article in The New Indian Express. The link follows. The article is certainly worth reading and throws up some thought provoking questions.